मंगलवार, नवंबर 30, 2010

बचपन की यादे - वह लहडू का सफ़र

 मय का आभाव है बच्चे बारह महीने पढ़ते है ट्यूशन और कोचिंग हमेशा चालू रहती है इसलिए लम्बी छुट्टियों में भी घर पर ही रहकर कम्टीशन की तैयारी में जुटे रहते है बच्चे माँ बाप सहित . 

एक ज़माना हमारा था . स्कूल की छुट्टी का मतलब होता था पढ़ाई से छुट्टी . गर्मियों की छुट्टी में जब दो महीने स्कूल बंद रहते थे उस समय शायद ही कोई बच्चा अपने घर में रहता था सब नानी  के घर जरूर जाते थे . मैं तो जाता ही था . वह दिन आज याद  आ रहे है . 

मेरी ननिहाल शहर से लगभग ४० किमी दूर थी २० किमी तक सड़क थी उसके बाद लहड़ू (बैलगाड़ी ) से जाना पड़ता था . लहड़ू से लगभग चार पांच घंटे लगते थे अगर लगातार  चले . इसलिए हम शाम को शहर से कसबे में आ जाते थे वही से सुबह जल्दी निकालते थे खराबा खराबा . आखिर जमींदार परिवार के नवासे थे तो लाव लश्कर भी साथ होता था . मुझे याद है एक लहड़ू आता था और एक लहडिया . लहड़ू को आप कार मान ले और लहडिया को जीप . लहडिया में सामान होता था और नौकर . और हम लोगो को सज़ा हुआ लहड़ू जिस में शानदार और जानदार बैल जुते होते थे .लहड़ू ऊपर से चादर से ढका होता था अन्दर गद्दे विछे होते थे . एक कोचवान होता था जो बैलो को हाकता था . 

लहडिया हमसे पहले चल देती थी और बीच रास्ते में एक बाग़ में पड़ाव डालती थी .चाकर वहा पर साफ़ सफाई करके फर्शी विछा कर पानी भर कर हमारा इंतज़ार करते थे हम लोग लहड़ू से वहा पहुचते थे तब तक सब रेड्डी मिलता था . हम वहा दोपहरा करते थे . यानी दोपहर में आराम . किस्से कहानिया होती थी . खेल कूद भी . उस समय पर्दा प्रथा जोरो पर थी लेकिन मेरी माँ लहड़ू पर से ऊपर डाली चादर हटवा देती थी लेकिन गाँव नज़दीक आने पर फिर से चादर डाल दी जाती थी . 

शाम तक हम अपनी नानिहाल पहुचते थे वहा भी स्वागत का इंतजाम होता था . नानाजी के राज में बच्चे तो शेर हो ही जाते है . वही हाल हमारा था . ५ पैसे की २५ लेमनचूस खाते थे . जो फरमाइश करते पूरी होती उस समय गाँव में . खेल कूद ,गुलेल ,गेंद तड़ी , सपोलिया , खो खो ,कबड्डी , बालीबाल और तो और उस जमाने में गाँव में बड़े जमींदार लोग टेनिस खेलते थे हैट लगाकर . मनोरंजन के लिए किस्से कहानिया . हमारे यहाँ एक नौकर था उसे किस्से बहुत आते थे जब मन होता था उसे बुला लेते थे . यहाँ तक रात में भी . वह किस्से सुनाता रहता था और हम लोग सो जाते थे . वह भी आधी रात तक बैठा बोलता रहता था उस डर  रहता था अगर यह लोग जग रहे हो और मैं चुप हो गया तो मार की संभावना बड़ जायेगी .

उसके किस्से और गाँव की मस्तिया फिर कभी 

शनिवार, नवंबर 27, 2010

वाह री किस्मत .........

मेरी भी जिन्दगी भी क्या जिन्दगी है जब आराम किया तब आराम किया सारे रिकार्ड तोड़ दिये आराम करने में .पहले मेरी दिन चर्या थी सुबह सो कर उठना नित्यक्रिया से निवृत होकर अखबार पढ़ना उसके बाद नाश्ता फिर इंटरनेट ............ ब्लॉग शलाग तब तक लंच तैयार उससे पहले स्नान फिर भोजन उसके बाद दोपहर में आराम ................. शाम को सो कर उठना फिर टीवी ,इंटरनेट कोई आ गया तो उससे मिललिए फिर डिनर उसकेबाद फिर इंटरनेट और फिर सोना . कितनी मेहनत करनी पड़ती थी आराम करने पर . कुछ लोग जो शुभ चिन्तक थे हलके से कुछ  कहते थे तो मैं कहता था जब भगवान् सुबह उठाने से पहले मेरे तकिये के नीचे ५००० रु . रख देता है तो मुझे काम करने की क्या जरुरत .........पर फिर किसी की नज़र लग गई मुझे .

समय ने मेरे साथ एक खेला बात बात में एक व्यापार की बात हुई घर के सब लोग इस बात पर राजी थे अगर मैं खुद यह काम देखू  तो ही काम करा जाएगा . मेरा  समय खराब था मैंने हां कर दी  . और वही बात मेरे गले पड़  गई आज मेरी हालत कोल्हू के बैल की तरह हो गई है आज स्थति यह है . सुबह जल्दी उठना चाय पीते हुए सरसरी तौर पर अखवार पढ़ना ८ बजे से पहले नहाना फिर नाश्ता या कहें खाना खा कर ५० किमी कार चला कर साइड पर पहुचना . दिन भर वहा खपे रहना शाम को ५ -६ बजे चल कर एक घंटे की ड्राइव कर फिर घर पर वापिस आना . तब तक इतनी शक्ति नही बचती कुछ करा जाए . रात में जल्दी खाना खा कर . मेल चेक करना दो चार पोस्ट पढ़ना और लिखने का मन होने के वावजूद पोस्ट ना लिख पाना .

 यह मेरी हालत हो गई . मैंने तो कुल्हाड़ी पर पैर मारा है या कहें एक षड्यंत्र का शिकार हो गया मैं . इसी बीच मेरे पैर में चोट लग गई . मेरे डाक्टर ने तीन हफ्ते का बेड रेस्ट बताया लेकिन समय ना मिलने के कारण एक दिन का भी रेस्ट ना मिल सका . आज भी स्टिक लेकर रोज़ चाकरी बजा रहा हूँ .

वाह री किस्मत .........

बुधवार, नवंबर 17, 2010

अफ़सोस बेहद अफ़सोस कुछ लाख करोड़ रुपल्ली के लिए एक नेता से इस्तीफा ले लिया

.
.
अफ़सोस बेहद अफ़सोस कुछ  लाख करोड़ रुपल्ली के लिए एक  नेता से इस्तीफा ले लिया गया . क्या होता अगर वह करोडो रूपए मिल भी जाते सरकार को . उससे से क्या कोई भ्रष्ट्राचार  ख़तम हो जाता या कोई कमी आ जाती .देश की जनता को गुमराह कर रहा विपक्ष सरकार को काम नहीं करने दे रहा है . अगर एक करोड़ सत्तासी लाख रुपए 2 जी स्पेक्ट्रम से मिल ही जाते तो सबसे ज्यादा जनता का ही होता . जो आज इतने सस्ते में बात हो रही मोबाइल से वह क्या हो पाती ? कभी नहीं . बिलकुल नहीं ........... विपक्ष नहीं चाहता कि आम जनता सस्ते में बात करे अपनों से और दुःख दर्द दूर करे . 

रुपए पैसे के मामले में सब एक हो जाते है संसद में . जो एक दूसरे को गाली देते है वह भी . मांग है जेपीसी की . क्या होगा जांच होके और क्या हो गया आज तक रिपोर्ट आकर . जितना समय ,पैसा ,कागज़ इन रिपोर्टो को बनाने में खर्च होता है उससे कई लाख बच्चो की कापी किताब आ सकती है . 

लेकिन संसद में विपक्ष कभी इकठ्ठा होकर कश्मीर में हो रहे आतंकवाद के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाता . कभी नक्सलवाद के प्रश्न पर एक नहीं होता . भूख और महंगाई पर कमेटी नहीं बनाता . क्यों ................ शायद इसमे वोट पर फर्क नहीं पड़ता और नोट ना ही मिलता .

और भारत का सत्ता पक्ष उसे तो ब्रह्मा से वरदान मिला है शायद ........ कुछ भी करो  तुम्हारे विरोधी कभी तुम्हे घेर नही पायेंगे और तुम अजेय रहोगे .

और ब्रह्मा के वरदान को सही साबित करने के लिए जनता जनार्दन हमेशा (एक दो बार अपवाद स्वरूप ) वचन निभा रही है 

शुक्रवार, नवंबर 12, 2010

बचपन की यादे जो मै सज़ोये हुये हूँ -१

बचपन की तरफ जब मुड़कर देखता हूँ तो जीवन के नवरस याद आ जाते है . बम्बई ........ जी हां उस समय बम्बई ही थी वह .सपरिवार घूम रहा था तो एक जगह मचल  गया कैमरे के लिए सड़क पर लोट गया बच्चा जिद पर था पापा के आगे धर्मसंकट था सामने  ही दूकान थी . Agfa 4 नाम का एक कैमरा खरीदा  तकरीवन १५० रु. कीमत थी . उसी कैमरे से बम्बई ,पूना ,कोल्हापुर ,गोवा तक की तस्वीर उतारी . क्लास ५ में पढ़ता था मैं उस समय .

समय के साथ साथ उमर बढती  गई और मांगे भी . कक्षा ६ स्कूल साइकिल से जाना चाहता था और लड़को की तरह .लेकिन घरवाले राज़ी नहीं किसी भी कीमत पर . जीप से भेजा जाता था ड्राइवर जाता था छोडने . बहुत बुरा लगता था . एक तरीके से बहिष्कृत था मैं साथ वाले लड़को के लिए सब अजीब से देखते थे . फिर जिद की. एक कमेटी बनी घर पर साइकिल के लिए .तमाम मुश्किल प्रस्ताव मेरे पक्ष में पास हुआ . मैं तार ब्रेक वाली साइकिल जो B.S.A. S.L.R. थी चाहता था लेकिन कहा गया गिर जाओगे कमेटी ने hero jet पसंद की वह भी लेडीज साइकिल . मन मार कर तीन साल तक वह साइकिल चलाई . बहुत दिनों तक वह ड्राइवर मेरे पीछे साइकिल चलता  था . बहुत गुस्सा आता था . लेकिन ...............

कक्षा ९ मैं मोटरसाइकिल की तलब लगी स्कूटर पर राजी हुए लेकिन मोपेड तक नहीं मिली . या तो कार से चलो या साइकिल से बीच  की कोई भरती नहीं थी मेरे लिए . साइकिल ऐसे चिपकी जो स्नातक तक नहीं छूटी . बहुत मन था बुलेट मोटरसाइकिल का जो अब हार्ले डेविडसन पर अटका है कभी  पूरा  नहीं हुआ .पता नहीं क्यों आज तक घर वालो ने मोटर साइकिल नहीं दिलाई .

बचपन की यादे किश्तों में सुनाने की इरादा है . अब अकेले में वही यादे सामने उठ खड़ी होती है . यह एक प्रयास है मेरा .देखिये कहाँ तक सफल हो पाता हूँ .

शनिवार, नवंबर 06, 2010

स्वागत पाताल के राजा और उनके कुत्तो का भी

थोड़ी देर बाद पाताल लोक का राजा जो अब व्यापारी बन गया है अपने देश के मुंबई नगर में पधार रहा है . कल ही तो राम जी रावण को मार कर अयोध्या लौटे थे वह उत्सव पूरा नहीं हुआ कि अहिरावण आ पहुंचें . सभी समाचार चैनल पलक पावडे विछाये खैरमकदम कर रहे है . रिपोर्ट चल रही है कितने हवाईजहाज ,कारे ,हैलीकाप्टर और कुत्ते साथ आ रहे है .

कुत्ते वह भी उन  के साथ वह भी चालीस कमाल है . आज उन कुत्तो के बारे में चर्चा की जाए जो बेहतर रहेगा . कुत्ते मूलतः वफादार माने जाते है जब तक वह राजनीति में ना उतरे . और इसमे शक है राजनितिज्ञो की संगत में रहने वाले कुत्ते क्यों नहीं राजनीति में उतरेंगे . इसी सुपर काम्प्लेक्स के साथ अमरीकी कुत्ते आज मुंबई में जहा तहा गर्व से सर उठाये घूम रहे है और मुंबई के कुत्ते आदर्श को देखते हुए आज खामोश है . और दिल्ली के इस बात को लेकर खुश है कि एक दिन बाद उन से मुलाक़ात होगी .

यहाँ के कुत्ते और वहां के कुत्ते बहुत से समस्याओं पर चर्चा करेंगे कुछ  संधि करेंगे जो आगे की नस्लों के काम आयेगी . भारतीय कुत्ते इस बात को लेकर चिंतित है उनके अपने देश में उनकी कोई कदर नहीं है विदेशियों को ज्यादा मान दिया जाता है .अमेरिकी कुत्तो में यह बात नहीं है वह अपने देश में अपने ही कुत्तो को श्रेष्ट मानते है . अपने यहाँ के कुत्ते आज भी झूटन पर गुजर करते है लेकिन वहां के फ्रेश फ़ूड काही इस्तेमाल करते है . इसी तरह के विषयो पर एक समांतर सेमीनार मुंबई के ताज और दिल्ली के मौर्या में होगी  . 

सम्मलेन की ताज़ा जानकारी आपको किसी तेज़ या धीमे चैनल पर कोई दीपक या बरखा देते हुए नज़र आ जायेंगे . अब मैं इस कुत्ता पुराण से विदा लेता हूँ . 

नोट ;- यह निर्मल हास्य के तौर पर भी लिया जा सकता है 

गुरुवार, नवंबर 04, 2010

जलाओ दिये रहे ध्यान इतना - धरा पर अन्धेरा कही ना रह जाए


                 जलाओ दिये रहे ध्यान इतना 

              धरा पर अन्धेरा कही ना रह जाए  



                                                    
         दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओ सहित


कम से कम 
अपने पड़ोस का तो कोई घर 
अँधेरे में ना रहे 
कोई दीपावली पर 
भूखा ना रहे .  

किसी के रूआसे चेहरे पर मुस्कान आ जाए 
आओ ऐसी दिवाली इस बार मनाये .