शनिवार, जुलाई 31, 2010

सांप्रदायिक सौहार्द ............ इसे कहते है

अभी कुछ माह पहले हमारा बरेली दंगो में झुलस गया था . होली के रंग छूटे भी नहीं थे दंगो की आग ने मानवता झुलसा  दी थी . दंगो के दोषी माना गया तौकीर रज़ा खान . तौकीर की  तेजाबी जुबान ने सैकड़ो को सड़क पर ला दिया . दुकाने जली ,मकान जले ,अरमान जले . तौकीर को गिरफ्तार किया और दवाब में छोड़ दिया जमानत पर  .

भाजपा जो हिन्दुओ की हिमायती होने का दम भरती है  .ने दंगे की आग पर रोटी सेकी . तो सपा कांग्रेस कहाँ पीछे रहती मुसलमानों के वोट के लिए  घडियाली आसूं बहाए गए . खैर अमन ने फिर चादर तानी लोग चैन में आ गए .

लेकिन यह मैं आज क्यों लिख रहा हूँ ............... क्या मेरे पास विषय ख़तम होगये . नहीं ऐसा नहीं बिलकुल नहीं पर एक घटना मजबूर कर देती है दंगो के पीछे छिपी सियासत को सोचने के लिए . .............

तौकीर रज़ा खान की नियमित जमानत के लिए जो जमानती आगे आये है वह है प्रखर हिंदूवादी भाजपा के एक पदाधिकारी जो भाजपा और तौकीर की जेबी पार्टी इतेहाद ए मिल्लत के सेतु का काम करते है . पिछले  कई चुनाव से तौकीर की मदद से भाजपा लोकसभा चुनाव वहां जीत रही थी इस बार ऐन चुनाव पर तौकीर को ऊँची कीमत देकर कांग्रेस ने अपनी तरफ किया और इस्तेमाल कर फेक दिया . जिससे तौकीर भी दुखी और उनके पुराने दोस्त भी दुखी थे . अब फिर से दोनों एक है . इसका एक ही पैमाना  है यह जमानत .

लेकिन दंगो के पीछे भी अगर यही दोस्ती थी तो ............................. हिन्दू को राम राम और मुसलमान को सलाम
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बुधवार, जुलाई 28, 2010

सिर्फ मना मना है और कुछ मना नहीं

PA


इसे क्या कहेंगे ?

सिर्फ मना मना है और कुछ मना नहीं

रविवार, जुलाई 11, 2010

क्वीन बेटन को कामन मैन बेटन क्यों नहीं कहते -वसीम बरेलवी

जो मुल्क कभी यूनियन जैक के गुलाम थे कामनवेल्थ के द्वारा आज भी उस गुलामी को ओढ़े हुए है . आज भी रानी की पालकी कंधे पर उठाये घूम रहे है . कामनवेल्थ गेम दिल्ली में हो रहे है अच्छी बात है लेकिन ब्रिटेन की महारानी की क्वींस बेटन  जो सब गुलाम देशो में घूम कर अब भारत में घूम रही है . अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े की तरह बेटन दौड़ रही है और हम स्वागत के लिए पलक पावडे विछा उसका स्वागत  कर रहे है .

सौभाग्य  से यह बेटन  हमारे शहर बरेली में एक दिन और एक रात रही . पूरा सरकारी अमला उसके स्वागत में लगा रहा . तमाम नेता ,अफसर बावर्दी उस बेटन को लेकर दौड़ने में फ़क्र महसूस कर रहे थे . हमारे बरेली के कोहिनूर वसीम बरेलवी साहब भी अनमने से कार्यक्रम में पहुचे . 

वसीम साहब की नाखुशी का कारण कामनवेल्थ गेम के लिए निकली बैटन के नाम से है . क्वींस कहें जाने को वह गुलामी का प्रतीक मानते है . वह चाहते  इस बेटन का नाम कामन मेन बेटन होना चाहिए . उन्होंने इस बात को अपने तरीके से दो शेरो  में कहा-

           

                                           कदम जब आपसी सहयोग की खातिर बढ़ाये थे 
                                           तो हिस्सेदारियों में सब बराबर क्यों नहीं रहते 
                                           हमें यह पूछने का हक है हम आज़ाद भारत है 
                                           क्वीन बेटन को कामन मैन बेटन क्यों नहीं कहते |

                                           क्वीन बेटन को हाथो हाथ लेने पर ख्याल  आया 
                                           आवामी चीज़ रानी बनकर क्यों भारत में आती है 
                                           गुलामी जिस्म की रहती है जंजीर कटने तक 
                                            गुलामी जेहन की बड़ी मुश्किल से जाती है |

 

शुक्रवार, जुलाई 09, 2010

testing post

testing only .....
इससे से पहली वाली पोस्ट चिट्ठाजगत पर नहीं पहुची

गुरुवार, जुलाई 08, 2010

ऐसा भी एक आज्ञाकारी पुत्र

आज्ञाकारी पुत्रो से इतिहास भरा है अपना . कुछ  ऐसे पुत्र है जो गुमनाम है .किस्से कहानियों में भी जिक्र नहीं हो पाता . ऐसे ही एक पिता पुत्र की कहानी है यह . कोई प्रमाण नहीं इसीलिए कहानी है वैसे हकीकत भी है यह .

रामलाल एक गाँव में रहता था .बहुत गुस्सैल स्वभाव का ,बिना बात के गाली देना उसका प्रिय शगल था . सुबह अपने घर के दरवाजे पर बैठ जाता और निकलने वालो को गाली देने लगता . लोग उससे नाराज़ रहते थे और उसे बुरा भला कहते थे . लेकिन रामलाल के डर के मारे उसके मुहं पर कोई कुछ नहीं कहता . पूरे इलाके में वह कुख्यात था वह . रामलाल बूढ़ा हो चला था . उसकी इच्छा थी कोई उसे भी अच्छा कहें . उसने  मरने के समय अपने पुत्र से वचन लिया वह उसका अंतिम संस्कार तब करे जब कोई उसे अच्छा कहें . और राम लाल मर गया .

पूरा गाँव खुश बबाल  कटा ठीक हुआ  रामलाल मरा . पुत्र के सामने समस्या आ खड़ी हुई कोई उसके बाप को अच्छा कहने वाला नहीं था जो कह दे बड़ा बुरा हुआ रामलाल मर गया कितना अच्छा आदमी था . एक दिन बीत गया बाप की कसम आड़े आ रही थी लाश बदबू छोड़ रही थी . लड़का परेशान क्या करे तभी उसे एक विचार आया . वह घर से निकला हाथ में लाठी जो सामने मिला उसे लठयाया . अफरातफरी मच गई . लोग इधर उधर भागने लगे और कहने लगे इससे अच्छा तो राम लाल था जो बिचारा सिर्फ गाली देता था उसका लड़का तो मारता है .

इस तरह लड़के ने अपने बाप की आख़िरी इच्छा पूरी की . अब सब रामलाल को अच्छा बता रहे थे .

इस आज्ञाकारी पुत्र को सम्मान मिलना चाहिए या नहीं . आप फैसला करे

सोमवार, जुलाई 05, 2010

नरेंद्र मोदी के लश्कर ए तैयब्बा से सम्बन्ध उजागर

नरेंद्र मोदी के बारे में जो दबी छुपी बाते थी आज उजागर हो गई . वह है मोदी के लश्कर से सम्बन्ध . अपने साथी नरेंद्र मोदी को फसते देख लश्कर के आतंकी हैडली ने मासूम निर्दोष इशरत जहाँ को अपना साथी बता दिया . यह वही इशरत जहाँ  है जो मोदी के गुर्गो ने फर्जी मुठभेड़ में मार दिया था . 

बेचारी अदालत और केंद्र सरकार ने इशरत जहाँ  को  मासूम माना था . एक निर्दोष महिला व उसके साथियो को बेहरहमी से क़त्ल कर मोदी ने देश में अशांति फैलाने का काम किया था . नरेंद्र मोदी को कट्टर हिन्दू नेता के तौर पर लश्कर ने ही स्थापित किया जिससे देश में अराजकता फैले . और मोदी को केंद्र सरकार ने जब कटघरे में घेरा तो लश्कर ने अपने साथी को बचाने के लिए उन मासूमो को अपना साथी कहा और अपना फिदायनी तक बताया . यह एक साजिश है फसे  मोदी को बचाने की जो केंद्र और धर्मनिरपेक्ष ताकते कतई बरदाश्त नहीं करेंगी . 

नोट :- यह सब लिखा पर्चा कांग्रेस के एक प्रवक्ता की जेब से रुमाल निकालते समय गिर गया जो १० जनपथ से बाहर निकल रहे        थे . उनके साथ कई स्वनामधन्य टी वी मालिक और पत्रकार भी थे . 







शनिवार, जुलाई 03, 2010

आक्टोपस महाराज की जय

 आक्टोपस महाराज की जय

नए ज्योतिषी आक्टोपस ने पहले भविष्यवाणी कर दी थी जर्मनी  के डिब्बे में बैठ कर की अर्जेंटीना आज हार जाएगा . विश्व कप में लगभग सटीक भविष्यवाणी करने वाले आक्टोपस के संकेत के कारण अर्जेंटीना जैसी टीम ४-० से हार कर घर लौट गई .

क्या यह सम्भव है एक जानवर द्वारा  ज्योतिष जानना . या एक महज इतेफाक है वैसे बहुत से लोग ज्योतिष को महज तुक्का ही तो मानते है . अब ज्ञानी ही बताये क्या सही है . फीफा कप में फुटबाल के अलावा आक्टोपस के तो चर्चे तो है ही .

गुरुवार, जुलाई 01, 2010

और वह फाँसी चढ़ गया ............ आखिर उसे अपनी करनी की सज़ा मिली


वह पूरी जेल में लोकप्रिय था . पूजा पाठी ,कर्मकांडी सब से हँस के ही मिलता था . लोग चकित होते थे वह जेल में क्यों है .कोई नहीं मानता था वह अपराधी हो भी सकता है . उसे क़त्ल के जुर्म में फाँसी की सज़ा हो चुकी थी . और सुप्रीम कोर्ट ने भी उस पर मोहर लगा दी थी . राष्ट्रपति से  क्षमा दान के लिए अपील थी इसीलिये वह आम कैदियों के साथ ही रहता था .

सब उसे पंडित जी कह कर बुलाते थे . वह अपने अतीत के अलावा सब बात करता था . बात लगभग ३० साल पुरानी है . पंडित के व्यवहार को देखते हुए उसे तत्कालीन राजनेतिक बन्दियो के साथ जो आपातकाल में जेलों में थे उनके साथ सेवा के लिए रख दिया . पंडित पक्का कैदी था पका मतलब सज़ा याफता . पीले कपड़ो में जब वह भजन गाता था तो उसके चेहरे पर एक ओज सा आ जाता था . राजनेतिक बंदी भी यह मानने लगे थे उसे किसी षड्यंत्र के तहत फसा कर उसे फाँसी के तख्ते पर पहुचा दिया गया है . वक्त के मारे राजनेतिक बन्दियो को उससे हमदर्दी हो गई थी . उसकी मदद के लिए कोशिशे शुरू हो गई . लेकिन तब तक देर हो चुकी थी .

राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका ठुकरा दी . उसकी मौत का दिन मुकर्रर हो गया . फांसी के अपराधी को तन्हाई में रखने के आदेश हो जाते है आज वह आखिरी बार सब कैदियों से मिल रहा था सब उसकी किस्मत पर दुखी थे . एक निरपराध से दिखने वाले  को मौत के मूंह में जाते देख सब को दुःख हो रहा था . तभी एक साथी कैदी ने इन्साफ के खिलाफ ईश्वर को दोषी ठहराया तभी पंडित ने कहा उसके साथ कोई अन्याय नहीं हुआ उसे अपनी करनी की सज़ा मिली है उसने जो अपराध किया उसके लिए तो फाँसी भी सज़ा के तौर पर कम है . यह कह वह हलके हलके तन्हाई की ओर चला गया कभी भी ना लौटने के लिए .

कुछ दिन बाद ही एक सुबह उसे फांसी दे दी गई . कोई उसकी लाश तक लेने नहीं आया क्योकि किसी बात पर उसने अपने पूरे परिवार को मार दिया था .